पाठ्य पुस्तकें >> राष्ट्रभाषा भारती कक्षा 2 राष्ट्रभाषा भारती कक्षा 2गंगादत्त शर्मा
|
2 पाठकों को प्रिय 138 पाठक हैं |
कक्षा-2 के विद्यार्थियों के लिए हिन्दी भाषी पुस्तक......
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
सामान्यतः शिक्षा और शिक्षण के क्षेत्र में और विशेषकर भाषा-शिक्षण के
क्षेत्र में आ रहे नवीनतम परिवर्तनों के अनुरूप शिक्षण सामग्री का निर्माण
आज शिक्षा जगत् की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता बन गया है।
‘राष्ट्रभाषा-भारती’ नाम से प्रकाशित यह
पुस्तकमाला एक
ओर जहाँ नवीनतम शिक्षण विधियों और सामाजिक अपेक्षाओं के अनुरूप एक उपयोगी
तथा प्रभावी उपकरण के रूप में उभरकर आई है, वहीं इसके निर्माण में
शिक्षार्थियों की रुचि, क्षमता और मानसिक स्तर का भी पूर्ण ध्यान रखा गया
है। प्रस्तुत पुस्तक माला में पूर्व प्राथमिक से लेकर आठवीं तक सभी
कक्षाओं के लिए पाठ्य पुस्तकें तथा विनिर्दिष्ट पाठ्य वस्तु के अधिगम,
पुनरीक्षण, आवृत्ति, पुनर्बलन के लिए अभ्यास पुस्तिका तैयार की गई हैं।
जहाँ तक चर्चित विषयों का प्रश्न है, इनमें विविध उपयोगी विषयों से परिचय
कराया गया है- शिक्षार्थी के अपने परिवेश, परिवार, मित्र, विद्यालय, समाज
से लेकर यात्रा, शौक, आदर्श, चुनौतियाँ, मनोरंजन और मानव मूल्य आदि तक। इन
विषयों को कविता, गीत, लेख, विवरण, कहानी, बोध कथा, लोक कथा आदि विधाओं के
द्वारा समझाया गया है। रोचकता सभी विधाओं की मूल अभिप्रेरक रही है।
द्वितीय भाग में कुल 22 पाठ है जिनमें सात कविताएँ हैं। अन्य पाठों में कहानी संवाद, पत्र, जीवनी, लेख आदि विविध विधाओं का समावेश है। भाषा और प्रस्तुत का स्तर शिक्षार्थियों की मानसिक क्षमता और वय के अनुरूप रखा गया है। कोई भी सीख या संदेश थोपा नहीं गया, पूरे पाठ में अनुस्यूत है। परिवेश को बालक की ही जिज्ञासु दृष्टि से देखा गया है। आम की गुठली, नए मेहमान, इनसे मिलो, ऋचा गई डाकघर, भाप का बल, संतोष के मज़े आदि पाठों में इसी सहज बाल दृष्टि और पूर्वज्ञान का सहारा लेकर रोचक ताना-बाना तैयार किया गया है। उदात्त मानवीय मूल्यों को सहज और ग्राह्य बनाकर प्रस्तुत किया गया है और दृश्य जगत के प्रति जिज्ञासा और तर्क के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण चेतना का विकास करने का प्रयास भी है।
संपूर्ण पुस्तकमाला की रणनीति यह रही है कि शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में पूरी कक्षा की भागीदारी हो, मात्र शिक्षक की नहीं। इसलिए पाठांत अभ्यासों में और अभ्यास पुस्तिकाओं में ऐसे प्रश्न रखे गए हैं जो समूह की भागीदारी को सुनिश्चित करें। इस माला की सभी पुस्तकों का उद्देश्य है भाषा के चारों कौशलों-सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना –का समन्वित विकास। सभी भाषिक कौशलों के अभ्यास के लिए शिक्षक की सक्रिय भूमिका अपेक्षित है और यह सतत् प्रक्रिया भी है। पाठ्यपुस्तक शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों के हाथों में एक साझे उपकरण के समान होती है जिसका उपयोग भी साझे रूप में ही हो सकता है।
सभी पुस्तकों का प्रणयन शिक्षा जगत के प्रख्यात विशेषज्ञों तथा अनुभवी और कर्मठ शिक्षकों के समन्वित प्रयास से संभव हो सका है। पुस्तक माला के लेखक और मानद परामर्शदाता भाषा शिक्षण के क्षेत्र में अधुनातन प्रवृत्तियों के जानकार हैं और शिक्षण तथा सामग्री-निर्माण में उनका सुदीर्घ अनुभव रहा है। शिक्षा और शिक्षण के क्षेत्र में कार्य कर रही अनेक संस्थाओं और संगठनों के शिक्षाविदों तथा ऐसी अनेक संस्थाओं के जुड़े प्रबुद्ध शिक्षकों ने भी प्रस्तुत सामग्री पर अपनी समालोचनात्मक सम्मति प्रदान की है। हम उन सबके प्रति अभार व्यक्त करते हैं। हम उन लेखकों और रचनाकारों के भी आभारी हैं जिनकी समर्थ रचनाएँ पाठों में आधार सामग्री के रूप में ली गई हैं और नई पीढ़ी को ज्ञान का प्रकाश देने का माध्यम बनी हैं।
द्वितीय भाग में कुल 22 पाठ है जिनमें सात कविताएँ हैं। अन्य पाठों में कहानी संवाद, पत्र, जीवनी, लेख आदि विविध विधाओं का समावेश है। भाषा और प्रस्तुत का स्तर शिक्षार्थियों की मानसिक क्षमता और वय के अनुरूप रखा गया है। कोई भी सीख या संदेश थोपा नहीं गया, पूरे पाठ में अनुस्यूत है। परिवेश को बालक की ही जिज्ञासु दृष्टि से देखा गया है। आम की गुठली, नए मेहमान, इनसे मिलो, ऋचा गई डाकघर, भाप का बल, संतोष के मज़े आदि पाठों में इसी सहज बाल दृष्टि और पूर्वज्ञान का सहारा लेकर रोचक ताना-बाना तैयार किया गया है। उदात्त मानवीय मूल्यों को सहज और ग्राह्य बनाकर प्रस्तुत किया गया है और दृश्य जगत के प्रति जिज्ञासा और तर्क के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण चेतना का विकास करने का प्रयास भी है।
संपूर्ण पुस्तकमाला की रणनीति यह रही है कि शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में पूरी कक्षा की भागीदारी हो, मात्र शिक्षक की नहीं। इसलिए पाठांत अभ्यासों में और अभ्यास पुस्तिकाओं में ऐसे प्रश्न रखे गए हैं जो समूह की भागीदारी को सुनिश्चित करें। इस माला की सभी पुस्तकों का उद्देश्य है भाषा के चारों कौशलों-सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना –का समन्वित विकास। सभी भाषिक कौशलों के अभ्यास के लिए शिक्षक की सक्रिय भूमिका अपेक्षित है और यह सतत् प्रक्रिया भी है। पाठ्यपुस्तक शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों के हाथों में एक साझे उपकरण के समान होती है जिसका उपयोग भी साझे रूप में ही हो सकता है।
सभी पुस्तकों का प्रणयन शिक्षा जगत के प्रख्यात विशेषज्ञों तथा अनुभवी और कर्मठ शिक्षकों के समन्वित प्रयास से संभव हो सका है। पुस्तक माला के लेखक और मानद परामर्शदाता भाषा शिक्षण के क्षेत्र में अधुनातन प्रवृत्तियों के जानकार हैं और शिक्षण तथा सामग्री-निर्माण में उनका सुदीर्घ अनुभव रहा है। शिक्षा और शिक्षण के क्षेत्र में कार्य कर रही अनेक संस्थाओं और संगठनों के शिक्षाविदों तथा ऐसी अनेक संस्थाओं के जुड़े प्रबुद्ध शिक्षकों ने भी प्रस्तुत सामग्री पर अपनी समालोचनात्मक सम्मति प्रदान की है। हम उन सबके प्रति अभार व्यक्त करते हैं। हम उन लेखकों और रचनाकारों के भी आभारी हैं जिनकी समर्थ रचनाएँ पाठों में आधार सामग्री के रूप में ली गई हैं और नई पीढ़ी को ज्ञान का प्रकाश देने का माध्यम बनी हैं।
-लेखक और संपादक
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book